bansuri Bansuri Hindi poetry
hindi poetry बांसुरी एक music instrument है जिसका उपयोग से खास कर हिन्दू देवता भगवान श्रीकृष्ण के हाथों में मिलता है उनकी कुछ वेश भूषा लोगों से अलग थी जैसे मस्तक पर मोर का पंख हाथ में बांसुरी
बांसुरी का मधुर सुर हमारे मन को मोह लेता है ।
बांसुरी के स्वर में बहे हम Hindi poetry
Hindi poetry
मैं बांसुरी हूं
अपने होंठों से लगा लो
भर कर सांसों का दम
निकलेगा स्वर बदलेगा रिदम
गाऊंगी मैं मैं नाचोगे तुम
मैं बांसुरी हूं स्वर में बहे हम….
उत्पत्ति है मेरी सांसों की झाड़
कोई कारीगर ले आया उखाड़
छाल उतार कर सुडोल बनाया
एक बांस को सार्थक कहे हम
मैं बांसुरी हूं सुर में बहे हम……
मुख से बजे सुर में बहे डेढ़ फुटिया सी
आठ छिद्रों में सात सुरों का ऐसा समावेश
चित्त मन चुराए बांसुरी की सरगम
मैं बांसुरी हूं सुर में बहे हम….
भोर भई बांसुरी के सुर में
पनघट कलश पानी भरने कोई आई
दृश्य अद्भुत है कल्पना से परे
इस कल्पना में विचरते हम
मैं बांसुरी हूं सुर में बहे हम….
काठ का हूं बिना मोल के
बांसुरी बन में भी हूं कीमती
मुझे रखें सदा गिरधारी
बजी हूं जब भी उनके मुख से
सखी राधा फिर थोड़ी आई
मैं बांसुरी हूं सुर बहे हम….
वृन्दावन से गोकुल से तक
मनमोहक मोहन की अद्भुत लीलाएं
जब भी बजे बांसुरी घुन
गोकुल की गाये टक लगाएं सुन
मैं बांसुरी हूं सुर में बहे हम
लेखक_राजदेव सम्राट
Hindi poetry रोटी का टुकड़ा
Hindi poetry रोटी का टुकड़ा बहुत ही भावात्मक कविता है जो राजदेव की रचनाओं में एक है जहां भूख को शांत करने के लिए मात्र एक उपाय है भोजन यह कथा उनकी है जो गरीबी रेखा के निम्न स्तर का जीवन जी रहे हैं।
एक ऐसी कविता है जिसमें गरीब लोगों के बारे में और उनके पेट भर खाने के संघर्ष की कथा व्यक्त की गति है।
#do waqt roti ka tukda||रोटी का टुकड़ा
कब मांगा सोना चांदी कब मांगें हीरे मोती
देश रोता है देख कर लोगों की लाचारी है
कोई घिरा दौलत में
कोई बैठा ग़रीबी के वेश में
अब और भी मुश्किल हो गया पाना
रोटी का टुकडा…..
जीवन की दौड़ में हथियारों की होड़ में
छिप कर पनप रही गरीबी कभी शहर मे कभी गांव में
रुदन है व्यथा है हे गरीबी तेरी क्या कथा है
अब और भी मुश्किल हो गया
जनसाधारण का जीवन यापन
अब मिलता नहीं रोटी का टुकडा …..
पेट की आग ही नहीं सम्पूर्ण लाचारी
होड़ है दौलत की दौड़ है भुख है बीमारी
हर किसी को
होता नहीं अहसास किसी के पास है अपार धन
किसी को मिलता नहीं दो वक्त अब
रोटी का टुकड़ा …..
कितने हैं गरीबी रेखा के नीचे लेकिन गरीब नहीं
संघर्ष है मात्र दो रोटी की खातिर
ओझल हो देश में ग़रीबी तिल-तिल कर जीती है
वक्त बदल उठा लिए हथियार
फिर भी ना मिला रोटी का टुकड़ा…..
मिटा दी इंसानियत फेंक दिया ईमानदारी का चोला
फिर भी ना मिला रोटी का टुकड़ा
कर दिया लहु-लुहान हथियार उठा लिया
हथिय्यारा बना दिया ऐ गरीबी!
तुने एक इंसान को क्या से क्या बना दिया….
मूक है जानते हैं सब रोल निभाता है अहम
रोटी का टुकड़ा…..।
लेखक_राजदेव सम्राट