शीशा और पत्थर
शीशा और पत्थर जानने से पहले यह सूचना पढ़ें
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चलिए आज जो शायरी का विषय है शीशा और पत्थर है हम समय और हालातों के अनुसार अपने दिल को अनेक प्रकार की उपमाएं देते हैं और कभी इसे भोला,कभी मासूम,कभी पागल,कभी पत्थर कह कर सम्बोधित कर विभिन्न प्रकार की उपमाएं देते रहते हैं और काव्य के शृंगार को चार चांद लगाते हुए शब्दों को कटाक्ष छुरी के भांति प्रयोग में लाने कि एक कला है जहां शब्दों से ही खुशी मिलती है वहीं शब्द ही घाव बन जाते हैं शुरू करते हैं “शीशा और पत्थर”
हमें वही शीशा और पत्थर मिला है
खुद से निगाहें मिला कर पूछते हैं
जीवन भर तेरी इबादत की हमनें
बता मेरे खुदा मेरे हिस्से में क्या मिला है।।
खुद को शीशा तुमको पत्थर मान लिया
जा बेवफा जा तुमको गुनेहगार मान लिया
अपनी जिंदगी भी कितनी हसीन थी कभी
अपनों से धोखा मिलने का दर्द आज जान लिया।।
शीशा सा मन मेरा टूट ना जाए
मेरे हाथों से मेरा दिल छूट ना जाए
शायद तुम्हें अहसास नहीं मोहब्बत का
नाज़ुक सा यह रिश्ता टूट ना जाए।।
खिलखिला कर सामने तेरे आया हूं
शीशे का मन सगेंमरमर का दिल लाया हूं
तुम समझो तो हर मुश्किल आसान हो जाए
दिल के रिश्ते गहरे होते हैं यह समझाने आया हूं।।
शीशे और पत्थर का मेल ना हो
दिल के रिश्तों में खेल ना हो
मैं तराशूं तुम्हें तुम वह मूरत हो
कैसे ना हर पल तेरी ज़रूरत हो।।
मिले जो रास्ता मंजिल तेरी ओर हो
मोहब्बत के सफ़र का यह हसीन दौर हो
तेरी निगाहों के शीशे में खुद को देखें हम
तेरे सिवा ना जिंदगी में कोई और हो।।
शीशे का मन पत्थर का दिल हो गया
सब कहते हैं हमें,जबसे तू बेवफा हो गया
खुशियों के फूल खूब खिले मेरे आंगन में
जमाने की नजर रही या तेरा कहर सब खा गया।।
शीशा और पत्थर की कैसे दोस्ती
शीशा साफ है सीधा-साधा अंजान
कठोर है, पत्थर की फितरत बुरी
सबको चोट देना उसकी पहचान।।
Seesa aur pathar
कहते हैं सब अब मैं बदल गया
पिघला शीशा और पत्थर चटक गया
अजीब सी तलब रही मोहब्बत की
जिसमें हाव भाव मिजाज सब बदल गया।
फितरत अच्छी है शीशे की आईना दिखाता है
चोट देकर पत्थर भी आपना रोल निभाता है
चंद रूपये कि खातिर इन्सान आपना ईमान गंवाकर
वह भी मिट जाएगा एक दिन क्यों भूल जाता है।
पत्थर दिल को पनाह देकर हम
दिल पर चोट खाए बैठे हैं
कहते हैं किस्मत का खेल है सब और
हम मोहब्बत पर दांव लगाए बैठे हैं।।
जिद्द कर बैठा आज यह दिल रब से
शीशा और पत्थर आपस में टकराएंगे
टूटने की आवाज सुनाई देगी तुम्हें
सारे अरमान टुकड़ों में बिखर जाएंगे।।
चंद मुलाकातें तेरी याद दिलाती है
हमने तुमको मान लिया अपना खुदा
और दिल पुछता है क्या तुमको भी
अकेले में हमारी याद सताती है।
मुझे पत्थर तराशने का शौक है
शीशों से टकराना अच्छा लगता है
रिश्तों की गहरी बुनियाद रहे इसलिए
रिश्ते दिल से निभाना अच्छा लगता है ।।
जनाब दोनों कठोर है यह दोनों नादान हैं
शीशा और पत्थर दोनों की फितरत अलग है
शीशा तुमको तुम्हारी हकीकत दिखाता है
पत्थर का काम तुमको चोट पहुंचाता है।।
मिल जाए जो निशान तेरी याद के
रहते हो क्यों परेशान बिना बात के
कितने किस्से बने तेरे मेरे नाम के
मिलती नहीं मोहब्बत अब तक बिना दाम के।।
पत्थर का दिल जब शीशे से टकराता है
बिखरता है शीशा और जोर से चिल्लाता है
दर्द देकर भी वह पत्थर क्यों महान हो गया है
बिछड़ कर तुमसे दिल शीशे सा बेजान हो गया है।।
मिल कर तुमसे दिल का शीशा साफ हो गया
बेवजह गुम रहते तेरे ख्यालों में चैन हमारा खो गया
बहार का शोर अब सुनाई नहीं देता वक्त के बहाव में
कहते हैं लोग मोहब्बत का चक्कर में काम हमारा हो गया।।
शीशा और पत्थर एक साथ रह नहीं सकते
हम तुमसे मोहब्बत करते हैं कह नहीं सकते
हम हो गए बर्बाद तुमको सोचते-सोचते
मोहब्बत में ताने और अब सह नहीं सकते।।
दर्द शीशे कम नहीं डर बना रहता है
रोकता है बहार की हवा पानी सब
दुश्मन सिर्फ पत्थर नहीं है उसका
जमाने का कसूर रहता है सब।।
शीशा और पत्थर दोनों घर के रखवाले हैं
आपस में कुछ अलग दोनों भोले भाले हैं
कल्पना है दोनों की,घर के लिए कौन खास
सुरक्षित रखता है इसलिए पत्थर से प्यार है।।
शीशा और पत्थर में मेल जोल हो नहीं सकता
दिल दुकान हर किसी के लिए खोल नहीं सकता
जानता हूं बहुत चाहने वाले मेरे, मैं रोक नहीं सकता
दिल नादान है मेरा मैं हद से ज्यादा सोच नहीं सकता।।
पत्थर दिल हो गया शीशे से टकरा कर
कुछ कह ना सका तुमसे मैं घबरा कर
तुम आए तो बहार आई और हम हुए खामोश
क्या अब मोहब्बत करोगे हमको डरा कर।।
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यह बात एक दम सच है कि यदि शीशा और पत्थर आपस में थोड़ा भी दबाव या स्थिति में परिवर्तन होता है तो शीशा टूट के बिखर जाता है और पत्थर की फितरत है कि वह सिर्फ पत्थर ही है जो दिल के लिए उपमा का काम करता है कठोरता भरे दिल को पत्थर दिल की उपमा दे दी जाती है। सीधे और सरल स्वभाव रखने वालों को शीशे का दिल की उपमा दे दी जाती है।
दिल फरेब दिल रुठा हैं क्यों
शीशे का दिल मेरा है चोट न कर
जानता हूं तुम पत्थर दिल रखते हो
बेवजह हम पर अहसान ना कर।।
शीशा और पत्थर दोनों एक हो नहीं सकते
आने वाले वक्त को तुम रोक नहीं सकते
बन जाओ शीशा या खुद को पत्थर बना लो
खुदगर्ज है दुनिया वाले तुम कुछ कर नहीं सकते।।
पत्थर दिल क्यों पिघलता नहीं है
अब ना किसी से शिकायत रही है
मेरी हसरतें अब मिटने लगी है
और तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं है।।
शीशा और पत्थर दिलों की दास्तान हो गए
लम्हें यादगार बनकर कर ना जाने कहां खो गए
एक हल चल रहती थी मेरे घर आंगन में
जो देखे ख्वाब हमने कभी ना जाने कब सो गए।।
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